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सफर - मौत से मौत तक….(ep-12)

अभी बाबूजी के शोक से उतरा भी नही था कि एक दिन…….

गौरी माँ बनने वाली थी, माँ बनने की खुशी, वो एहसास एक माँ ही समझ सकती है, ना उस खुशी को शब्दो मे उतारा जा सकता है ना ही उस दर्द को शब्दों से बयाँ किया जा सकता है। अभी आठवां महीना समाप्ति की तरफ था, नंदू और कौशल्या बहुत ध्यान रखते थे गौरी का….
  नंदू सुबह जल्दी उठकर खुद ही चाय बनाकर माँ और पत्नी गौरी दोनो को देता था, और फिर नाश्ता बनाने में माँ की मदद करता उसके बाद खुद का टिफिन पैक करके चल पड़ता था, और शाम को जल्दी आ जाता था ताकि उसकी मां, और उसके होने वाले बच्चे की मां दोनो को कोई तकलीफ ना हो।
  थोड़ी थोड़ी परेशानी जैसे भूख ना लगना, घबराहट महसूस करना ऐसा तो अक्सर गौरी को होता था, लेकिन आज ना जाने क्यो वो बहुत ज्यादा घबराने लगी थी, रात का समय था नंदू भी घर पर था, खाना खाने तक सब सही था, लेकिन फिर अचानक ही ना जाने क्यो गौरी के पेट मे बेतहाशा दर्द होने लगा था, गौरी की बिगड़ती हालत देखकर नंदू और उसकी माँ दोनो घबरा गई, कौशल्या भी तीन बच्चों की माँ थी, लेकिन उसके अनुमान से आठवें महीने में ऐसा दर्द तो नही होना चाहिए था, कौशल्या ने नंदू को कुछ दूर रहने वाली एक औरत जो दाई का काम करती थी उसके पास भेजा, नजदीक नजदीक के घरों में बच्चा कराने के लिए उसी को बुलाते थे लोग। नंदू भागकर निर्मला ताई को बुलाने चले गया, रिक्शा लेकर  तेजी से भागते हुए गया और करीब आधे घंटे बाद ताई को ले आया।
    गौरी की तड़प अब तक जारी थी, वो जोर जोर से रो रही थी। नंदू ने ताई और माँ को कमरे में छोड़ा और खुद उन्ही के कहने पर बाहर आ गया।

नंदू गौरी की चीख सुनकर सहम जाता और मन ही मन खुद को कहता- "बस थोड़ी देर की बात है, उसके बाद नया मेहमान आएगा, कुछ देर दर्द सहन करना होगा गौरी"

माँ भाग कर कमरे से बाहर आती, कभी सरसो का तेज गर्म करके ले जाती नाभि की मालिश के लिए, तो कभी पानी गुनगुना करके गौरी को पिलाती है, जैसा जैसा ताई कहती वैसा वैसा करती रहती।  नंदू हर बार यही सवाल पूछता की और कितना वक्त लगेगा,

"बेटा…. पूरी रात भी लग सकती है, इतना आसान नही है औलाद को जन्म देना, जान हथेली में रखकर एक औरत माँ बनती है, तू टेंशन मत ले….बस भगवान से दुआ कर की अपनी कृपा बनाये रखना" माँ ने जवाब दिया और अंदर चले गयी।

अब नंदू वापस अकेले बैठ गया, और गौरी की चीख सुनता रहा। नंदू की भी जान निकली जा रही थी, गौरी से इतना प्यार जो करता था। उसकी तकलीफ में खुद भी आंसू बहा रहा था- "भगवान तूने सारी तकलीफें एक औरत को ही दे दी, किस बात की सजा देता है तू उन्हें…. जब एक औरत जन्म लेती है तो उसे कोसते है लोग….कहते है कि उफ्फ लड़की हो गयी….मर क्यो नही गयी होते ही….एक और लड़की का बोझ कौन ढोएगा, कुछ लोग तो हीम्मत वाले बहुत ही बहादुर भी होते है जो अपनी औलाद का गला दबा देते है, सिर्फ इसलिए कि लड़की है,  तब वो उस लड़की के उस दर्द को भूल जाते है जो उसने उसे जन्म देते समय सहन किये थे, उस तकलीफ को भूल जाते है जो 9 महीने से उस औरत को हो रही थी।" नंदू भगवान से कह रहा था।

लेकिन हमारा नंदू ऐसा बिल्कुल नही था, वो उस जमाने मे भी आधुनिक सोच रखता था, लड़का लड़की एक सामान….उसके लिए लड़का या लड़की कोई मायने नही रख रहा था, बस जो भी होना है जल्दी हो जाये और गौरी को थोड़ी राहत मिले….और उसे भी तब ही शुकुन आना था।

आधी रात हो चुकी थी, थोड़ी देर शांत होती तो फिर से एक जोर की चीख मार ही देती थी गौरी , शायद वो बहुत तकलीफ में थी, और इतनी तकलीफ में की खुद की तकलीफ बता भी नही पा रही थी, कभी चादर को खुद के मुंह मे ठूंसती तो कभी खुद की साड़ी का पल्लू….ताकि वो चिल्लाहट जोर से ना हो, लेकिन कराहना और चीखना चिल्लाना जारी रहा,
अडोसी पड़ोसी भी बाहर बैठे नंदू से हालचाल पूछकर चले गए, सब जानते ही थे कि गौरी माँ बनने वाली थी इसलिए ये सब आवाजे आ रही है।

नंदू रात को बाहर आंगन में चटाई बिछाकर बैठा था, और आसमान की तरफ देखकर तारे गिन रहा था, हालांकि तारे गिनना इतना आसान नही है कि कोई उन्हें गिन सके, लेकिन नंदू सिर्फ वही तारे गिन रहा था जो ज्यादा चमकदार थे, जिनकी चमक एक अलग सी थी,
सितारों से जगमगाता आसमान और कमरे से गूंजती कराह और ठंडी बहती हवा तीनो नंदू के अंदर एक अजीब सी सिहरन पैदा कर रही थी,
  तभी नंदू को एक गिरता हुआ तारा नजर आया….जिसे देखकर मन्नत मांगने का चलन उस दौर में बहुत प्रचलित था, मंदिर में जाकर मांगी गई दुआ से ज्यादा असरदार होती थी गिरते तारे को देखकर मांगी गई दुआ।

  "है प्रभु! मुझे कुछ नही चाहिए बस मेरा बच्चा सही सलामत हो जाये, उसके बाद आपसे कभी कुछ नही मांगूंगा, गौरी की सारी तकलीफें खत्म कर दो और बच्चे को सही सलामत जन्म दे दो" नंदू ने दुआ मांगी।

धीरे धीरे कराह बढ़ने लगी, और एक जोर से कराह के बाद अचानक शांति फैल गयी, अब आवाज गूँजी तो एक नन्हे बच्चे के रोने की,

नंदू ने बच्चे की आवाज सुनी तो खुशी से फुले नही समाया….उसने मन ही मन भगवान को थेँक्स बोला और आसन लगाकर बैठ गया। और इंतजार करने लगा की उसे अंदर आने की अनुमति कब मिलेगी।

पड़ोस की ताई बाहर आकर नंदू को बोली- "बधाई हो तुम्हारा बेटा हुआ है"
बस इतना कहकर अंदर को चली गयी
नंदू पूछना चाहता था कि गौरी ठीक तो है ना, मगर उसका सवाल करने से पहले ताई अंदर चली गई, अब नंदू सोचने लगा कि अब तो वो ठीक ही होगी, जितना दर्द मिलना था मिल चुका, और कराह भी नही रही"

थोड़ी ही देर हुई थी कि माँ की चिल्लाहट सुनकर नंदू चौक गया।

"गौरी….ओ गौरी……क्या हुआ गौरी….गौरी आंखे खोल….अब सब ठीक हो गया है गौरी…."

कौशल्या की आवाज सुनकर नंदू अंदर जाने लगा तो दरवाजे के पास जाते जाते रुक से गया
"अंदर कैसे जा सकता हूँ ना जाने वहाँ……." नंदू ने सोचा

नंदू ने दरवाजे से ही आवाज लगाई- "क्या हुआ माँ….क्या हुआ गौरी को"

इस बात का जवाब ताई ने दिया- "कुछ नही बेटा, शायद बेहोश हो गयी है, तू मटके से ठंडा पानी ले आए एक गिलास"

नंदू भागकर रसोई में गया और एक गिलास ठंडा पानी ले आया

अंदर कमरे में झिझकते हुए गया तो एक प्यारे से छोटे से बच्चे पर नजर पड़ी….बिल्कुल छोटा….जैसे खिलौना हो कोई

फिर नजर घुमाई गौरी की तरफ जो शायद बेहोश पड़ी थी, उसके चेहरा पसीने से भीगा हुआ था, और बूंद बूंद पसीना बह रहा था। कौशल्या अपने साड़ी के पल्लू को हिलाकर उसको हवा दे रही थी,
नंदू ने गिलास ताई को पकड़ाया और और खुद भी आवाज देने लगा- "गौरी….हे गौरी.…."

ताई ने गौरी के पसीने से भीगे चेहरे में पानी का जोर से छपाक दिया, एक नही दो नही बहुत बार, दूसरी तरफ कौशल्या गौरी गौरी करके उसे हिला रही थी लेकिन वो होश में नही आई।

नंदू धीरे धीरे ताई को पीछे खींचते हुए खुद गौरी के पास खड़ा हुआ और उसके भीगे गालों को हाथ से पोछते हुए कांपते हुए आवाज में बोला - "क्या हुआ गौरी….उठ क्यो नही रही हो तुम…."
उधर एक तरफ बच्चा रो रहा था, दूसरी तरफ बच्चे की माँ शांत हो चुकी थी,बिल्कुल खामोश, इतनी खामोश की वो खामोशी जिंदगी भर नही टूट पाई….

नंदू अंकल और यमराज दोनो वही खड़े थे, यमराज छोटे मासूम बच्चे के साथ खेल रहा था जिसकी अभी आंखे भी नही खुली थी, और नंदू उसकव देख रहा था जिसकी आंखे हमेशा के लिए बंद हो चुकी थी।
"काश की गिरते सितारे से बच्चा सलामत हो जाये कि जगह बच्चे की माँ सलामत रहे माँग लेता….मैंने तो सिर्फ इतना कहा था कि उसकी सारी तकलीफ खत्म कर दी….और ऊपर वाले ने जिंदगी ही खत्म कर दी। वैसे अच्छा ही किया, वरना आज औलाद के द्वारा दी जाने वाली तकलीफ में उसे इससे भी ज्यादा तकलीफ होती" नंदू अंकल ने कहा ।

छोटा नंदू अब तक गौरी को उठाने का प्रयत्न कर रहा था। लेकिन गौरी का ढीलापन और ठंडे पड़ चुके हाथ पैर ने ये इशारा दे दिया था कि गौरी ने दुनिया को अलविदा कह दिया है।

नंदू ने कभी सपने में भी नही सोचा था कि कभी ऐसा भी हो सकता है, नंदू की मानो जिंदगी ही खत्म हो चुकी थी, कुछ बचा ही नही था जीने के लिए, अब नंदू के जीने का सहारा था एक बच्चा और अपनी माँ कौशल्या।
 
नंदू हरपल गौरी की यादों में खोया रहता था, छोटे बच्चे को समीर कहकर पुकारने लगे , समीर की दंतुरित मुस्कान में भी नंदू सिर्फ गौरी की हंसी ढूंढता था।
   गौरी का हंसना, गौरी का नाराज हो जाना, गौरी का नंदू से गुस्सा होकर सिसकना और फिर नंदू के गले लगाते ही मान जाना रह रहकर नंदू को  तड़पाता था।


कब से उसको ढूंढता हूँ
भीगी पलकों से यहाँ
अब न जाने वो कहाँ है
था जो मेरा आशियाँ
रब्बा मेरे मुझको बता
हाय!…. दी मुझे क्यों ये सज़ा
अब सारे बंधन तोड़ के
यादों को तनहा छोड़ के
मैं गम से रिश्ता जोड़ के
जाउँ कहाँ………


नंदू की जिंदगी हर पल नंदू का इम्तिहान लेती रही, बिना अपनी पत्नी के वो रह भी लेता, लेकिन उस बच्चे को पालना बहुत मुश्किल था जिसके जन्म के बाद ही माँ गुजर चुकी थी, अब उसे गाय का दूध पिलाते थे, चम्मच से या फिर रुई के गोले से, और भी बहुत उपाय अपनाते थे, कौशल्या उसकी मालिश करते करते उसकी किस्मत को कोसती थी
"कैसी किस्मत लेकर पैदा हुआ है तू….  पैदा होते ही मां को खो दिया अपने… भगवान ने कितना बड़ा अन्याय किया है तेरे साथ।" कौशल्या समीर को कह रही थी। जो अभी ना उसकी बात समझ सकता था, ना ही कुछ बोल सकता था।

नंदू के जीवन से सारी खुशियां छीन गयी हो जैसे, वो उदासी के घेरे में था, गुमशुम से रहता था, इसका असर उसके काम मे भी पड़ रहा था, स्टेशन में बैठा रहता था, कोई खुद रिक्शा ढूंढते हुए आ गया तो ठीक , अगर नही आया तो वो भी शांति से सोच में डूबा रहता था, उसने सारी कोशिशें करनी छोड़ दी थी… उसे वो तन्हाई बहुत पसंद थी जिसमे वो गौरी को याद करता था….शाम को घर भी जाता तो चुपचाप रहता, ना माँ से ज्यादा बात करता था ना समीर से खेलता था, बस जब माँ कुछ काम करती और समीर बहुत ज्यादा रोने लगता तो गोद मे उठा लेता था।


एक छोटा सा जहाँ था
चंद खुशियों से भरा
उसको मुझसे छीन कर है
मिल गया तुझको भी क्या
अब है फकत सिर्फ जान
कर दूँ मैं वो भी अता
अब सारे बंधन तोड़ के
यादों को तनहा छोड़ के
मैं गम से रिश्ता जोड़ के
जाऊं कहाँ..


कौशल्या ने बहुत कोशिशें की, ताकि नंदू कोई शादी कर ले,
मगर नंदू से जब भी शादी की बात करती तो नन्दू बहुत गुस्सा करने लगता, पूरे दिन का गुस्सा माँ पर निकाल देता और कहता- "तुम क्यो पड़ी हो मेरी शादी के पीछे….मैंने कोई शादी नही करनी….भगवान के लिए बार बार एक ही बात मत दोहराओ"

"कब तक ऐसे ही रहेगा, और अपने लिये नही तो इस बच्चे के लिए कर ले, मेरा क्या भरोसा कब तेरे बाबूजी का बुलावा आया जाएगा, उसके बाद तू क्या क्या करेगा, इस बच्चे को देखेगा या काम करेगा, और काम पर भी नही जा पायेगा तो क्या पकाएगा और क्या खायेगा" कौशल्या ने कहा।

नंदू के पास जब कोई जवाब नही होता तो वो उठकर चले जाता था, अभी भी वो उठा और बिना कोई जवाब दिए चले गया।

नंदू के जाने के बाद कौशल्या ने नंदू को आवाज देते हुए कहा।"मेरी बात पर ध्यान दे बेटा, अभी तू बच्चा ही है, तेरी उम्र ही क्या है, वो तो तेरे बाबूजी ने तेरी शादी जल्दी करा दी, तेरी उम्र के बच्चे अभी भी कुंवारे होते है"

शायद नंदू ने सुना भी या नही, लेकिन कौशल्या और अपना दिमाग खराब ना करते हुए वापस समीर की मालिस में जुट गई।

कहानी जारी है


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1 Comments

सिया पंडित

29-Dec-2021 03:44 PM

👌👌

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